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अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ | शाही शायरी
ab aisi baaten koi kare jo sab ke man ko lubha jaen

ग़ज़ल

अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ

सालिक लखनवी

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अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
कोई तो ऐसा गीत छिड़े वो जिस को सुनें और आ जाएँ

बे-ताल है कैसी ये सरगम बे-लहरा पंजम है मद्धम
जो राग है दीपक इस मन में उस राग को कैसे गा जाएँ

अब चलना है तो चलना है क्या पाँव के छालों को देखें
इस धरती की पग-डंडी से कोई ठिकाना पा जाएँ

ये मेरा लहू वो तेरा लहू ये मेरा घर वो तेरा है
जो आग लगी है दोनों में अब जाते जाते बुझा जाएँ

ये ढेर नहीं है मिट्टी का इक 'सालिक' थक कर सोया है
कुछ ओस गिरा दो पलकों से कुछ फूल यहाँ लहरा जाएँ