EN اردو
आया था कोई ज़ेहन तक आ कर पलट गया | शाही शायरी
aaya tha koi zehn tak aa kar palaT gaya

ग़ज़ल

आया था कोई ज़ेहन तक आ कर पलट गया

सत्य नन्द जावा

;

आया था कोई ज़ेहन तक आ कर पलट गया
लेकिन बिसात-ए-दिल तो हमारी उलट गया

हाए वो सैल-ए-अश्क जो पलकों पे थम गया
आँखों में अपनी आज समुंदर सिमट गया

फैलाए हम खड़े रहे पलकों की झोलियाँ
आया उमड के अब्र मगर वो भी छट गया

तेरी गली में तेरा तसव्वुर किए हुए
इक शख़्स आप साए से अपने लिपट गया

दश्त-ए-हयात से कोई गुज़रा है इस तरह
गर्द-ए-क़दम से वक़्त का चेहरा भी अट गया