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आया नहीं जो कर कर इक़रार हँसते हँसते | शाही शायरी
aaya nahin jo kar kar iqrar hanste hanste

ग़ज़ल

आया नहीं जो कर कर इक़रार हँसते हँसते

नज़ीर अकबराबादी

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आया नहीं जो कर कर इक़रार हँसते हँसते
जुल दे गया है शायद अय्यार हँसते हँसते

इतना न हँस दिल उस से ऐसा न हो कि चंचल
लड़ने को तुझ से होवे तयार हँसते हँसते

ले कर सरीह दिल को वो गुल-इज़ार यारो
ज़ाहिर करे है क्या क्या इंकार हँसते हँसते

हँस हँस के छेड़ उस को ज़िन्हार तू न ऐ दिल
होगा गले का तेरे ये हार हँसते हँसते

हँसने की आन दिखला लेता है दिल को गुल-रू
करता है शोख़ यारो बे-कार हँसते हँसते

झुँझला के हाल दिल का कहना नहीं रवा है
लाएक़ यहाँ तो करना इंकार हँसते हँसते

दस्तार सुर्ख़ सज कर तुर्रा ज़री का रख कर
आया जो दिल को लेने दिलदार हँसते हँसते

आँखें लड़ा के उस ने हँस कर निगह की ऐसी
जो ले गया दिल आख़िर खूँ-ख़्वार हँसते हँसते

आया है देखने को तेरे 'नज़ीर' ऐ गुल
दिखला दे टुक तू उस को दीदार हँसते हँसते