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आया न रास नाला-ए-दिल का असर मुझे | शाही शायरी
aaya na ras nala-e-dil ka asar mujhe

ग़ज़ल

आया न रास नाला-ए-दिल का असर मुझे

जिगर मुरादाबादी

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आया न रास नाला-ए-दिल का असर मुझे
अब तुम मिले तो कुछ नहीं अपनी ख़बर मुझे

दिल ले के मुझ से देते हो दाग़-ए-जिगर मुझे
ये बात भूलने की नहीं उम्र भर मुझे

हर-सू दिखाई देते हैं वो जल्वा-गर मुझे
क्या क्या फ़रेब देती है मेरी नज़र मुझे

मिलती नहीं है लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर मुझे
भूली हुई न हो निगह-ए-फ़ित्नागर मुझे

डाला है बे-ख़ुदी ने अजब राह पर मुझे
आँखें हैं और कुछ नहीं आता नज़र मुझे

करना है आज हज़रत-ए-नासेह से सामना
मिल जाए दो घड़ी को तुम्हारी नज़र मुझे

मस्ताना कर रहा हूँ रह-ए-आशिक़ी को तय
ले जाए जज़्ब-ए-शौक़ मिरा अब जिधर मुझे

डरता हूँ जल्वा-ए-रुख़-ए-जानाँ को देख कर
अपना बना न ले कहीं मेरी नज़र मुझे

यकसाँ है हुस्न-ओ-इश्क़ की सर-मस्तियों का रंग
उन की ख़बर उन्हें है न मेरी ख़बर मुझे

मरना है उन के पाँव पे रख कर सर-ए-नियाज़
करना है आज क़िस्सा-ए-ग़म मुख़्तसर मुझे

सीने से दिल अज़ीज़ है दिल से हो तुम अज़ीज़
सब से मगर अज़ीज़ है तेरी नज़र मुझे

मैं दूर हूँ तो रू-ए-सुख़न मुझ से किस लिए
तुम पास हो तो क्यूँ नहीं आते नज़र मुझे

क्या जानिए क़फ़स में रहे क्या मोआ'मला
अब तक तो हैं अज़ीज़ मिरे बाल-ओ-पर मुझे