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आया बसंत फूल भी शो'लों में ढल गए | शाही शायरी
aaya basant phul bhi shoalon mein Dhal gae

ग़ज़ल

आया बसंत फूल भी शो'लों में ढल गए

कुमार पाशी

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आया बसंत फूल भी शो'लों में ढल गए
मैं चूमने लगा तो मिरे होंट जल गए

लपका मिरे ख़याल का कौंदा कुछ इस तरह
चारों तरफ़ जो लफ़्ज़ पड़े थे पिघल गए

रंगों के एहतिमाम में सूरत बिगड़ गई
लफ़्ज़ों की धन में हाथ से मा'नी निकल गए

झोंके नई रुतों के जो गुज़रे क़रीब से
बीते दिनों की धूल मिरे मुँह पे मल गए

सर पर हमारे धूप की चादर सी तन गई
घर से चले तो शहर के मंज़र बदल गए