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आवाज़ के सौदागरों में इतनी फ़नकारी तो है | शाही शायरी
aawaz ke saudagaron mein itni fankari to hai

ग़ज़ल

आवाज़ के सौदागरों में इतनी फ़नकारी तो है

ऐनुद्दीन आज़िम

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आवाज़ के सौदागरों में इतनी फ़नकारी तो है
शेर-ओ-अदब के नाम ही पर गर्म-बाज़ारी तो है

कोई कहे कोई सुने कोई लिखे कोई पढ़े
हर दिल को बहलाए ग़ज़ल बिक जाए बेचारी तो है

कव्वों के आगे गुंग हैं क्या तूतियाँ कि बुलबुलें
अहल-ए-चमन हैं मुतमइन रस्म-ए-सुख़न जारी तो है

माना ज़मीन-ए-कर्बला पर दस्तरस मुमकिन नहीं
लेकिन सर-ए-कूफ़ा यज़ीदों की अमल-दारी तो है

इन शाइरों में एक दो शाएर भी हैं महफ़िल-ज़दा
सद-आफ़रीं इन ठेका-दारों में रवा-दारी तो है

किस ने कहा 'आज़िम' ख़ुशामद जी-हुज़ूरी ऐब है
राह-ए-तलब हमवार करने की कला-कारी तो है