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आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था | शाही शायरी
aatish-fishan zaban hi nahin thi badan bhi tha

ग़ज़ल

आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था

फ़ुज़ैल जाफ़री

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आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था
दरिया जो मुंजमिद है कभी मौजज़न भी था

मैं अपनी ख़्वाहिशों से वफ़ादार था सो हूँ
ग़म वर्ना दिल-ख़राश भी ख़्वाहिश-शिकन भी था

काले ख़मोश पानी को एहसास तक नहीं
चेहरे पे मरने वाले के इक बाँकपन भी था

किस तरह महर ओ माह को करते अलग 'फ़ुज़ैल'
शोला-नफ़स जो था वही गुल-पैरहन भी था