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आते आते मिरा नाम सा रह गया | शाही शायरी
aate aate mera nam sa rah gaya

ग़ज़ल

आते आते मिरा नाम सा रह गया

वसीम बरेलवी

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आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया

रात मुजरिम थी दामन बचा ले गई
दिन गवाहों की सफ़ में खड़ा रह गया

वो मिरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न है
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

उस को काँधों पे ले जा रहे हैं 'वसीम'
और वो जीने का हक़ माँगता रह गया