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आतश-बजाँ हैं शिद्दत-ए-सोज़-ए-निहाँ से हम | शाही शायरी
aatash-bajaan hain shiddat-e-soz-e-nihan se hum

ग़ज़ल

आतश-बजाँ हैं शिद्दत-ए-सोज़-ए-निहाँ से हम

ऋषि पटियालवी

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आतश-बजाँ हैं शिद्दत-ए-सोज़-ए-निहाँ से हम
इस पर भी काम लेंगे न आह-ओ-फ़ुग़ाँ से हम

दिल पर जो बन गई है कहें क्या ज़बाँ से हम
गिर कर तिरी नज़र से गिरे आसमाँ से हम

अंजाम-ए-जुस्तुजू पे वही आ गया मक़ाम
आग़ाज़-ए-जुस्तुजू में चले थे जहाँ से हम

दैर-ओ-हरम को छोड़ कर आए थे हम यहाँ
जाएँ कहाँ अब उठ के तिरे आस्ताँ से हम

माना कि तेरा ग़म है ग़म-ए-राहत-आफ़रीं
लाएँ अदा-शनास-अलम दिल कहाँ से हम

किस को ख़बर थी इश्क़ में किस को ख़याल था
कट जाएँगे तअ'ल्लुक़-ए-कौन-ओ-मकाँ से हम

एहसास-ए-रंग-ओ-बू पे बहारों का है समाँ
मानूस हैं शगुफ़्तगी-ए-गुल-रुख़ाँ से हम

आज़ार-ए-ग़म वफ़ूर-ए-अलम सोज़-ए-ना-तमाम
ख़ुश-बख़्त-ओ-फ़ैज़याब हैं उम्र-ए-रवाँ से हम

ऐसा घिरे हैं जादा-ओ-मंज़िल के फेर में
खोए गए हैं अपने ही नाम-ओ-निशाँ से हम

कैसी तलाश किस की तमन्ना कहाँ का शौक़
उलझे हुए हैं लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-निहाँ से हम

अग गुमरही जो राह दिखाए तो कुछ बने
मंज़िल पर आ के दूर हुए कारवाँ से हम

हो जाएँ उन पे मिट के सुबुक-दोश ऐ 'रिशी'
तंग आ चुके हैं ज़ीस्त के बार-ए-गराँ से हम