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आता है तेग़ हाथ में वो जंग-जू लिए | शाही शायरी
aata hai tegh hath mein wo jang-ju liye

ग़ज़ल

आता है तेग़ हाथ में वो जंग-जू लिए

आसिफ़ुद्दौला

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आता है तेग़ हाथ में वो जंग-जू लिए
जाता हूँ मैं भी सर के तईं रू-ब-रू लिए

गुलज़ार यक-ब-यक जो महकने लगा है यूँ
सच कह सबा तू फिरती है याँ किस की बू लिए

सोए कभी न साथ हमारे ख़ुशी से तुम
जावेंगे गोर में यही हम आरज़ू लिए

देता नहीं है चैन इलाही मैं क्या करूँ
फिरता हूँ रात-दिन दिल-ए-बेताब कू लिए

'आसिफ़' न छोड़ दस्त-ए-सख़ावत को ज़ीनहार
लाया है कुछ न साथ न जावेगा तू लिए