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आसूदा-ए-मता-ए-करम बोलते नहीं | शाही शायरी
aasuda-e-mata-e-karam bolte nahin

ग़ज़ल

आसूदा-ए-मता-ए-करम बोलते नहीं

इनाम हनफ़ी

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आसूदा-ए-मता-ए-करम बोलते नहीं
या'नी अमीन-ए-दौलत-ए-ग़म बोलते नहीं

वारफ़्तगान-ए-इज्ज़ का आलम है दीदनी
सर है दर-ए-नियाज़ पे ख़म बोलते नहीं

क्यूँ बारगाह-ए-नाज़ में तारी है ख़ामुशी
क्या साकिनान-ए-बाग़-ए-इरम बोलते नहीं

शिकवा-तराज़ जब्र-ए-मोहब्बत हैं बुल-हवस
अहल-ए-वफ़ा ख़ुदा की क़सम बोलते नहीं

किस दिन था इम्तिहान-ए-वफ़ा से मुझे गुरेज़
कब डगमगाए मेरे क़दम बोलते नहीं

है शरह-ए-कर्ब-ए-ज़ीस्त का अश्कों पे इंहिसार
लेकिन ये तर्जुमान-ए-अलम बोलते नहीं

'इनआ'म' ज़ुल्म-ओ-जौर मुसलसल के बावजूद
हम हैं फ़िदा-ए-लज़्ज़त-ए-ग़म बोलते नहीं