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आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था | शाही शायरी
aasuda-e-mahfil abhi dam bhar na hua tha

ग़ज़ल

आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था

ज़हीर अहमद ताज

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आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था
वो कौन सा था वार जो मुझ पर न हुआ था

चश्म-ए-सितम-ईजाद की वुसअ'त के मुक़ाबिल
ये तेग़ तो क्या चर्ख़-ए-सितमगर न हुआ था

पलकों ही पे तड़पा वो मिरे सोज़-ए-दरूँ से
जो अश्क अभी बढ़ के समुंदर न हुआ था

जब तक कि न देखी थी निगाहों की करामत
मैं मुन्हरिफ़-ए-बादा-ओ-साग़र न हुआ था

जब तक न था शह-ए-रग पे पड़ा साया-ए-अब्रू
मैं वाक़िफ़-ए-शीरीनी-ए-ख़ंजर न हुआ था

क्या जानें नज़र आया है क्या रंग-ए-मोहब्बत
इतना कभी मुज़्तर दिल-ए-मुज़्तर न हुआ था

ऐ 'ताज' अजब जोश उठा बहर-ए-करम में
इक हर्फ़-ए-दुआ भी तो मुकर्रर न हुआ था