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आसमाँ से सहीफ़े उतरते रहे | शाही शायरी
aasman se sahife utarte rahe

ग़ज़ल

आसमाँ से सहीफ़े उतरते रहे

उषा भदोरिया

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आसमाँ से सहीफ़े उतरते रहे
रौशनी से मगर लोग डरते रहे

ज़िंदगी इतनी मजबूर सी हो गई
हादसे मुझ को अश्कों से भरते रहे

जिन को सब कुछ मिला उन को सब कुछ मिला
जो बिखरते रहे बस बिखरते रहे

बन गईं जब भी हमराज़ तन्हाइयाँ
दिल की हर बात हम दिल से करते रहे

आते जाते नज़र तुझ से मिलती रही
आइने ज़ावियों पर उभरते रहे

चंद यादें खिलीं और मुरझा गईं
बस हवाओं में ज़र्रे बिखरते रहे

आप आते रहे गीत गाते रहे
घर के दीवार-ओ-दर भी सँवरते रहे

कुछ भी टूटा नहीं कुछ भी बिखरा नहीं
हादसे रास्तों से गुज़रते रहे

कब किया हम ने 'ऊषा' किसी से गिला
ख़ुद में जीते रहे ख़ुद में मरते रहे