आसमाँ पर है दिमाग़ उस का ख़ुद-आराई के साथ
माह को तौलेगा शायद अपनी रा'नाई के साथ
सैर कर आलम की ग़ाफ़िल दीदनी है ये तिलिस्म
लुत्फ़ है इन दोनों आँखों का तो बीनाई के साथ
दिल कहीं है जाँ कहीं है मैं कहीं आँखें कहीं
दोस्ती अच्छी नहीं महबूब हरजाई के साथ
इस में ज़िक्र-ए-यार है इस में ख़याल-ए-यार है
अपनी ख़ामोशी भी हम-पल्ला है गोयाई के साथ
अहद-ए-पीरी में वो आलम नौजवानी का कहाँ
वलवले जाते रहे सारी तवानाई के साथ
दीदा-ए-आहू कहाँ वो अँखड़ियाँ काली कहाँ
क्या मुक़ाबिल कीजिए शहरी को सहराई के साथ
दिल नहीं गुर्ग-ए-बग़ल है ज़ब्त से ख़ूँ कर उसे
कार-ए-दुश्मन करते हैं ऐ दोस्त दानाई के साथ
एक बोसे पर गरेबाँ-गीर ऐ नादाँ न हो
तेरी रुस्वाई भी है आशिक़ की रुस्वाई के साथ
दिल तो दीवाना है 'अहक़र' तू भी दीवाना न हो
कोई सौदाई बना करता है सौदाई के साथ

ग़ज़ल
आसमाँ पर है दिमाग़ उस का ख़ुद-आराई के साथ
राधे शियाम रस्तोगी अहक़र