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आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं | शाही शायरी
aasman khol diya pairon mein rahen rakh din

ग़ज़ल

आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

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आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं
फिर नशेमन पे उसी शख़्स ने शाख़ें रख दीं

जब कोई फ़िक्र जबीं पर हुई रक़्साँ मैं ने
ख़्वाब आँखों में रखे आँखों पे पलकें रख दीं

दरमियाँ ख़ामुशी पहले तो न आई थी मगर
बातों बातों में ही उस ने कई बातें रख दीं

उस ने जब तोड़ दिए सारे तअ'ल्लुक़ मुझ से
खींच कर सीने से फिर मैं ने भी साँसें रख दीं

मेरी तन्हाई से तंग आ के मिरे ही घर ने
आज थक-हार के दहलीज़ पे आँखें रख दीं