EN اردو
आसमाँ है समुंदर पे छाया हुआ | शाही शायरी
aasman hai samundar pe chhaya hua

ग़ज़ल

आसमाँ है समुंदर पे छाया हुआ

बृजेश अम्बर

;

आसमाँ है समुंदर पे छाया हुआ
इस लिए रंग पानी का नीला हुआ

वक़्त नद्दी की मानिंद बहता हुआ
एक लम्हा मगर क्यूँ है ठहरा हुआ

था कोई तो जो दहलीज़ पर धर गया
रात जलती हुई दिन दहकता हुआ

गुम-शुदा शहर में ढूँढता हूँ किसे
एक इक शक्ल को याद करता हुआ

धूप-जंगल में फिर खो गया है कोई
चाँद तारों को आवाज़ देता हुआ

धूप और लू भरी थीं फ़ज़ाएँ मगर
उस की यादों का मौसम था भीगा हुआ

सूरत-ए-हाल अम्बर अजब चीज़ है
उस ने दरिया कहा मैं किनारा हुआ