EN اردو
आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला | शाही शायरी
aashna koi ba-wafa na mila

ग़ज़ल

आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला

इमदाद अली बहर

;

आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला
कश्ती-ए-दिल का नाख़ुदा न मिला

जा-ए-मरहम नमक छिड़कना था
ज़ख़्म खाने का कुछ मज़ा न मिला

उस के कूचे में ऐसे भूले हम
घर के जाने का रास्ता न मिला

दिल दिया जिस को रंज है पाया
कोई दिलदार बा-वफ़ा न मिला

ज़िंदगी तल्ख़ हो गई अपनी
तुझ से मिलने का कुछ मज़ा न मिला

देख ली हम ने दोस्ती तेरी
हम से अब आँख बेवफ़ा न मिला

कुछ इजारा नहीं बने न बने
क्या शिकायत है दिल मिला न मिला

आसमाँ पर दिमाग़-ए-यार रहा
कभी झुक कर वो मह-लक़ा न मिला

बोसा-ए-लब की तुम से क्या उम्मीद
एक बीड़ा भी पान का न मिला

ढूँढती हैं कुनिश्त में जा कर
शैख़ का'बे में तो ख़ुदा न मिला

एक इक को पिलाए दो दो जाम
दर्द भी हम को साक़िया न मिला

नक़ल कब अस्ल की मुक़ाबिल है
उस के चेहरे से आ बना न मिला

नज़र आई जो वो दहन तो कहूँ
मुझ को अन्क़ा का आशियाना मिला

जिन को तकिया था अपनी मसनद पर
उन को देखा कि बोरिया न मिला

'बहर' निकले थे ढूँढने उस को
ऐसे खोए गए पता न मिला