आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला
कश्ती-ए-दिल का नाख़ुदा न मिला
जा-ए-मरहम नमक छिड़कना था
ज़ख़्म खाने का कुछ मज़ा न मिला
उस के कूचे में ऐसे भूले हम
घर के जाने का रास्ता न मिला
दिल दिया जिस को रंज है पाया
कोई दिलदार बा-वफ़ा न मिला
ज़िंदगी तल्ख़ हो गई अपनी
तुझ से मिलने का कुछ मज़ा न मिला
देख ली हम ने दोस्ती तेरी
हम से अब आँख बेवफ़ा न मिला
कुछ इजारा नहीं बने न बने
क्या शिकायत है दिल मिला न मिला
आसमाँ पर दिमाग़-ए-यार रहा
कभी झुक कर वो मह-लक़ा न मिला
बोसा-ए-लब की तुम से क्या उम्मीद
एक बीड़ा भी पान का न मिला
ढूँढती हैं कुनिश्त में जा कर
शैख़ का'बे में तो ख़ुदा न मिला
एक इक को पिलाए दो दो जाम
दर्द भी हम को साक़िया न मिला
नक़ल कब अस्ल की मुक़ाबिल है
उस के चेहरे से आ बना न मिला
नज़र आई जो वो दहन तो कहूँ
मुझ को अन्क़ा का आशियाना मिला
जिन को तकिया था अपनी मसनद पर
उन को देखा कि बोरिया न मिला
'बहर' निकले थे ढूँढने उस को
ऐसे खोए गए पता न मिला
ग़ज़ल
आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला
इमदाद अली बहर