EN اردو
आश्ना जो मज़ा का होता है | शाही शायरी
aashna jo maza ka hota hai

ग़ज़ल

आश्ना जो मज़ा का होता है

मीर असर

;

आश्ना जो मज़ा का होता है
अपने हक़ में वो काँटे बोता है

शैख़-जी एक रोज़ मुझ को 'असर'
लगे कहने अबस तू रोता है

इन बुतों के लिए ख़ुदा न करे
दीन-ओ-दिल यूँ कोई भी खोता है

न तुझे दिन को चैन है इक आन
एक दम रात को न सोता है

मैं कहा ख़ूब सुन के ऐ नादाँ
जा मशीख़त को क्यूँ डुबोता है

तू है मुल्लाँ तिरी बला जाने
आशिक़ी में जो कुछ कि होता है