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आशियाना मिरा बर्बाद न कर ऐ सय्याद | शाही शायरी
aashiyana mera barbaad na kar ai sayyaad

ग़ज़ल

आशियाना मिरा बर्बाद न कर ऐ सय्याद

मुर्ली धर शाद

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आशियाना मिरा बर्बाद न कर ऐ सय्याद
बाग़ से तू मुझे आज़ाद न कर ऐ सय्याद

क़ैद तू ने किया गुलचीं ने मिरा दिल तोड़ा
उस पे कहता है कि फ़रियाद न कर ऐ सय्याद

फूल कुम्हला गए नग़्मों का ज़माना न रहा
पिछली बातों को तो अब याद न कर ऐ सय्याद

इक न इक रोज़ तो गुलशन में बहार आएगी
ख़ाक मेरी अभी बर्बाद न कर ऐ सय्याद

फिर ये कहता हूँ कि मैं 'शाद' हूँ नाशाद न हूँ
आशियाना मेरा बर्बाद न कर ऐ सय्याद