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आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे | शाही शायरी
aashiq hue to ishq mein hoshyar kyun na the

ग़ज़ल

आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे

वारिस किरमानी

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आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे
हम इन के मदह-ख़्वाँ सर-ए-बाज़ार क्यूँ न थे

हाँ जब सितम को ऐन करम कह रहे थे लोग
हम भी शरीक-ए-गर्मी-ए-गुफ़्तार क्यूँ न थे

जब चल रहा था वक़्त पे जादू निगाह का
इक हम असीर-ए-चशम-ए-फुसूँ-कार क्यूँ न थे

अब क्या शहीद-ए-नाज़ बने फिर रहे हैं लोग
मरने का शौक़ था तो सरदार क्यूँ न थे

'वारिस' ये शाइरी सम-ए-क़ातिल से कम नहीं
आप इस बला-ए-जाँ से ख़बर-दार क्यूँ न थे