EN اردو
आशिक़ हुए हैं जब से हम ख़ुद से जा रहे हैं | शाही शायरी
aashiq hue hain jab se hum KHud se ja rahe hain

ग़ज़ल

आशिक़ हुए हैं जब से हम ख़ुद से जा रहे हैं

इश्क़ औरंगाबादी

;

आशिक़ हुए हैं जब से हम ख़ुद से जा रहे हैं
बे-दर्द नासेहों ने नाहक़ सता रहे हैं

फ़स्ल-ए-बहार में हम क्यूँ-कर न हों दिवाने
गुल चाक कर गरेबाँ धूमें मचा रहे हैं

फिर आवने का व'अदा तुम कर गए हो हम से
प्यारे तुम्हारी रह पर आँखें लगा रहे हैं

ऐ अब्र तू बरसता और ही तरफ़ चला जा
उमडे हैं ग़म के बादल सो हम थमा रहे हैं

दिल खोल टुक जो बरसें अर्ज़ ओ समा डुबावें
मिज़्गान-ए-तर के ज़ालिम वो अब्र छा रहे हैं

ये इश्क़ नीं है बर-अक्स जा देख ले चमन में
आ ख़ुश-नयन अदम से आँखें दिखा रहे हैं