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आरज़ूओं को अपनी कम न करो | शाही शायरी
aarzuon ko apni kam na karo

ग़ज़ल

आरज़ूओं को अपनी कम न करो

जावेद कमाल रामपुरी

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आरज़ूओं को अपनी कम न करो
जीना चाहो तो कोई ग़म न करो

हाथ आए ख़ुशी तो ख़ुश होलो
दिल हो ग़मगीं तो आँख नम न करो

जैसी मिल जाए जिस क़दर मिल जाए
पी भी लो फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम न करो

जैसी गुज़रे गुज़ारते जाओ
साज़-ओ-सामाँ कोई बहम न करो

लोग कहते फिरें तुम्हें क्या क्या
आप अपने पे ये सितम न करो

जी में जो आए वो लिखो साहब
जो ज़माना कहे रक़म न करो