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आरज़ूएँ ना-रसाई रू-ब-रू मैं और तू | शाही शायरी
aarzuen na-rasai ru-ba-ru main aur tu

ग़ज़ल

आरज़ूएँ ना-रसाई रू-ब-रू मैं और तू

ख़ातिर ग़ज़नवी

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आरज़ूएँ ना-रसाई रू-ब-रू मैं और तू
क्या अजब क़ुर्बत थी वो भी मैं न तू मैं और तू

झुटपुटा ख़ूनी उफ़ुक़ की वुसअतें ख़ामोशियाँ
फ़ासले दो पेड़ तन्हा हू-ब-हू मैं और तू

ख़ुश्क आँखों के जज़ीरों में बगूलों का ग़ुबार
धड़कनों का शोर सुरमा-दर-गुलू मैं और तू

बारिश-ए-संग-ए-मलामत और ख़िल्क़त शहर की
प्यार के मासूम जज़्बों का लहू मैं और तू

अजनबी नज़रों के शोले हर तरफ़ फैले हुए
दुश्मन-ए-जाँ राह ओ मंज़िल काख़-ओ-कू मैं और तू

नफ़रतों की गर्द रस्ता काटती हर मोड़ पर
इश्क़ की ख़ुश्बू में उड़ते कू-ब-कू मैं और तू

एहतिराम-ए-आदमी एहसास-ए-ग़म मर्ग-ए-अना
आज किस किस ज़ख़्म को करते रफ़ू मैं और तू