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आरज़ू रक़्स में है वक़्त की आवाज़ के साथ | शाही शायरी
aarzu raqs mein hai waqt ki aawaz ke sath

ग़ज़ल

आरज़ू रक़्स में है वक़्त की आवाज़ के साथ

अर्श सहबाई

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आरज़ू रक़्स में है वक़्त की आवाज़ के साथ
ज़िंदगी नग़्मा-सरा है नए अंदाज़ के साथ

ज़िंदगी देख न यूँ अजनबी अंदाज़ के साथ
हम को निस्बत है तिरी चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ के साथ

उस के मज़कूर से लबरेज़ हैं नग़्मे उस के
उस ने मर्ग़ूब क्या दिल को किस ए'जाज़ के साथ

ये हक़ीक़त में ज़माने की ख़बर रखते हैं
सहमे सहमे से हैं जो हसरत-ए-परवाज़ के साथ

दिल है सर-ए-चश्मा-ए-नग़्मात अगर टूट गया
कितने नग़्मात बिखर जाएँगे उस साज़ के साथ

वक़्त की बात है अब कोई नहीं उन का वक़ार
जो कभी बात भी करते थे बड़े नाज़ के साथ

क्या कहें बन गए हम सब की नज़र का मरकज़
उस ने क्या देख लिया अजनबी अंदाज़ के साथ

'अर्श' जो दर्द में डूबे हुए दिल से निकले
चंद शो'ले भी लपकते हैं इस आवाज़ के साथ