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आरज़ू की हमा-हामी और मैं | शाही शायरी
aarzu ki hama-hami aur main

ग़ज़ल

आरज़ू की हमा-हामी और मैं

हसन अख्तर जलील

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आरज़ू की हमा-हामी और मैं
दर्द-ए-दिल दर्द-ए-ज़िंदगी और मैं

मौजा-ए-क़ुलज़ुम-ए-अबद और तू
चंद बूंदों की तिश्नगी और मैं

रात-भर तेरी राह तकते रहे
तेरे कूचे की रौशनी और मैं

छुप के मिलते हैं तेरी यादों से
शब की तन्हाई चाँदनी और मैं

एक ही राह के मुसाफ़िर हैं
बे-कराँ रात ख़ामुशी और मैं

रात उस पैकर-ए-ख़याल के पास
चंद फूलों की बॉस थी और मैं

ये भी इक मंज़िल-ए-जुनूँ थी 'जलील'
वर्ना ज़िंदान-ए-आगही और मैं