आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं
जुस्तुजू-ए-मुहाल में सब हैं
हिज्र अपनी तरफ़ से है वर्ना
उस तरफ़ से विसाल में सब हैं
वा-ए-ग़फ़लत उधर की कहते नहीं
अपनी ही क़ील-ओ-क़ाल में सब हैं
ऐ 'रज़ा' तुझ को कुछ ख़याल नहीं
अपने अपने ख़याल में सब हैं
ग़ज़ल
आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं
रज़ा अज़ीमाबादी