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आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं | शाही शायरी
aarzu-e-visal mein sab hain

ग़ज़ल

आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं

रज़ा अज़ीमाबादी

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आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं
जुस्तुजू-ए-मुहाल में सब हैं

हिज्र अपनी तरफ़ से है वर्ना
उस तरफ़ से विसाल में सब हैं

वा-ए-ग़फ़लत उधर की कहते नहीं
अपनी ही क़ील-ओ-क़ाल में सब हैं

ऐ 'रज़ा' तुझ को कुछ ख़याल नहीं
अपने अपने ख़याल में सब हैं