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आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ | शाही शायरी
aarzu-e-dawam karta hun

ग़ज़ल

आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ

असलम कोलसरी

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आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ
ज़िंदगी वक़्फ़-ए-आम करता हूँ

आप से इख़्तिलाफ़ है लेकिन
आप का एहतिराम करता हूँ

मुझ को तक़रीब से तअल्लुक़ क्या
मैं फ़क़त एहतिमाम करता हूँ

दर्स-ओ-तदरीस इश्क़ मज़दूरी
जो भी मिल जाए काम करता हूँ

जुस्तुजू ही मिरा असासा है
जा इसे तेरे नाम करता हूँ

हाँ मगर बर्ग-ए-ज़र्द की सूरत
सुब्ह को मैं भी शाम करता हूँ

वक़्त गुज़रे पे आए हो 'असलम'
ख़ैर कुछ इंतिज़ाम करता हूँ