आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ 
ज़िंदगी वक़्फ़-ए-आम करता हूँ 
आप से इख़्तिलाफ़ है लेकिन 
आप का एहतिराम करता हूँ 
मुझ को तक़रीब से तअल्लुक़ क्या 
मैं फ़क़त एहतिमाम करता हूँ 
दर्स-ओ-तदरीस इश्क़ मज़दूरी 
जो भी मिल जाए काम करता हूँ 
जुस्तुजू ही मिरा असासा है 
जा इसे तेरे नाम करता हूँ 
हाँ मगर बर्ग-ए-ज़र्द की सूरत 
सुब्ह को मैं भी शाम करता हूँ 
वक़्त गुज़रे पे आए हो 'असलम' 
ख़ैर कुछ इंतिज़ाम करता हूँ
        ग़ज़ल
आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ
असलम कोलसरी

