EN اردو
आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की | शाही शायरी
aarti hum kya utaren husn-e-mala-mal ki

ग़ज़ल

आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की

प्रेम वारबर्टनी

;

आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की
बुझ गई हर जोत पूजा के सुनहरे थाल की

तुम तो क्या दस्तक नहीं देतीं हवाएँ तक यहाँ
दिल है या सुनसान कुटिया है किसी कंगाल की

देख ऐ गुल-पैरहन तेरे लिए परदेस से
कौन लाया है हवाओं की मोअ'त्तर पालकी

फिर उगाने दो यहाँ हम को लहू के कुछ गुलाब
आप ने तो शाहराह-ए-दिल बहुत पामाल की

तू मुक़द्दस आँख है या'नी हसीं सूरज की आँख
और मैं गहरी गुफा वो भी किसी पाताल की

तुम पिलाओ अपने होंटों से अगर आब-ए-हयात
फेंक देंगे हम सुराही आतिशीं सय्याल की

गुनगुना कर तैरता है जिस में ख़ुश्बू का बदन
'प्रेम' तेरी शाइ'री वो झील है सुर-ताल की