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आपसी बातों को अख़बार नहीं होने दिया | शाही शायरी
aapsi baaton ko aKHbar nahin hone diya

ग़ज़ल

आपसी बातों को अख़बार नहीं होने दिया

मन्नान बिजनोरी

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आपसी बातों को अख़बार नहीं होने दिया
हम ने ये कमरा हवा-दार नहीं होने दिया

बद-गुमानी को किया चाय पिला कर रुख़्सत
नाश्ते का भी तलबगार नहीं होने दिया

दिल के ज़ख़्मों की ख़बर होने न दी अश्कों को
ग़म का आँखों से सरोकार नहीं होने दिया

सख़्त लफ़्ज़ों में भी देती है मज़ा बात उस की
उस ने लहजे को दिल-आज़ार नहीं होने दिया

रख दिए होंटों पे उँगली की तरह होंट उस ने
एक शिकवा भी नुमूदार नहीं होने दिया

उस ने नादान हो, कह कर हमें उकसाया था
उम्र भर उस को समझदार नहीं होने दिया

चाहतें पाईं हैं 'मन्नान' वफ़ाओं के तुफ़ैल
जज़्बा-ए-इश्क़ को अय्यार नहीं होने दिया