आप से झुक के जो मिलता होगा 
उस का क़द आप से ऊँचा होगा 
नुक्ता-चीनों पे जो हँसता होगा 
उस को अपने पे भरोसा होगा 
वो जो वीरान फिरा करता है 
उस के सर में कोई सहरा होगा 
तुम न समझोगे मिरी बात मगर 
सोचने वाला समझता होगा 
वो जो मरने पे तुला है 'अख़्तर' 
उस ने जी कर भी तो देखा होगा
        ग़ज़ल
आप से झुक के जो मिलता होगा
वकील अख़्तर

