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आप को उस ने अब तराशा है | शाही शायरी
aapko usne ab tarasha hai

ग़ज़ल

आप को उस ने अब तराशा है

मीर हसन

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आप को उस ने अब तराशा है
क़हर है ज़ुल्म है तमाशा है

उस को लेते बग़ल में डरता हूँ
नाज़ुकी में वो शीशा बाशा है

क्यूँ कहूँ अपने सीम-तन का हाल
गाह तोला है गाह माशा है

तिरे कूचे से उठ नहीं सकता
किस वफ़ा-कुश्ता का ये लाशा है

गर फ़रिश्ता भी हो 'हसन' तो वहाँ
गाली और झिड़की बे-तहाशा है