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आप को क्यूँ नहीं लगा पत्थर | शाही शायरी
aapko kyun nahin laga patthar

ग़ज़ल

आप को क्यूँ नहीं लगा पत्थर

ज़हरा क़रार

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आप को क्यूँ नहीं लगा पत्थर
कैसे नाकाम हो गया पत्थर

लड़कियाँ ख़ामुशी से बैठी हुईं
हाए वो बोलता हुआ पत्थर

टूटना ठोकरों से बेहतर था
फूल क्या सोच कर बना पत्थर

आईने टूट कर बिखर भी गए
और वो ढूँढता रहा पत्थर

मेरे हिस्से में सख़्तियाँ आईं
हर किसी ने मुझे कहा पत्थर

एक ही ज़िंदगी में दूसरा प्यार
एक रस्ते में दूसरा पत्थर

मजनूँ इक ऐसा राज़ है 'ज़हरा'
जिस ने समझा उसे पड़ा पत्थर