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आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ | शाही शायरी
aapko bhul ke main yaad-e-KHuda karta hun

ग़ज़ल

आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

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आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ
ख़ुद अना कहता हूँ मौजूद बक़ा करता हूँ

कुफ्र-ओ-इस्लाम का मूजिद हुआ बंदा हो कर
फिर वो मैं कौन हूँ जो ख़ुद हूँ कहा करता हूँ

इल्म-ए-आ'दाद से होता है हिजाब-ए-अकबर
एक हर हाल में हूँ कुल में रहा करता हूँ

हूँ बसारत में निहाँ उज़्र है बीनाई का
रोज़-ए-रौशन में ही ख़ुद आप रहा करता हूँ

बे-समझ नाम ख़ुदा का वो लिया करते हैं
पूछता हूँ तो ये कहते हैं सुना करता हूँ

जिस्म-ए-ख़ाकी न समझ यार का बस जल्वा है
याद और भूल से मैं दिल को ज़िया करता हूँ

मैं समझता हूँ ख़ुदा आप को बंदा बन कर
हाँ इसी शान का 'मरकज़' हूँ कहा करता हूँ