आप हमारे साथ नहीं
चलिए कोई बात नहीं
आप किसी के हो जाएँ
आप के बस की बात नहीं
अब हम को आवाज़ न दो
अब ऐसे हालात नहीं
इस दुनिया के नक़्शे में
शहर तो हैं देहात नहीं
सब है गवारा हम को मगर
तौहीन-ए-जज़्बात नहीं
हम को मिटाना मुश्किल है
सदियाँ हैं लम्हात नहीं
ज़ालिम से डरने वाले
क्या तेरे दो हाथ नहीं
ग़ज़ल
आप हमारे साथ नहीं
ताहिर फ़राज़