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आप हैं बे-गुनाह क्या कहना | शाही शायरी
aap hain be-gunah kya kahna

ग़ज़ल

आप हैं बे-गुनाह क्या कहना

बेख़ुद देहलवी

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आप हैं बे-गुनाह क्या कहना
क्या सफ़ाई है वाह क्या कहना

उस से हाल-ए-तबाह क्या कहना
जो कहे सुन के वाह क्या कहना

हश्र में ये उन्हें नई सूझी
बन गए दाद-ख़्वाह क्या कहना

उज़्र करना सितम के बाद तुम्हें
ख़ूब आता है वाह क्या कहना

तुम न रोको निगाह को अपनी
हम करें ज़ब्त-ए-आह क्या कहना

तुझ से अच्छे कहाँ ज़माने में
वाह ऐ रश्क-ए-माह क्या कहना

ग़ैर पर लुत्फ़-ए-ख़ास का इज़हार
मुझ से टेढ़ी निगाह क्या कहना

ग़ैर से माँग कर सबूत-ए-वफ़ा
बन गए ख़ुद गवाह क्या कहना

दिल भी ले कर नहीं यक़ीन-ए-वफ़ा
है अभी इश्तिबाह क्या कहना

बल्बे चितवन तिरी मआज़-अल्लाह
उफ़ रे टेढ़ी निगाह क्या कहना

उन गुनों पर नजात की उम्मीद
'बेख़ुद'-ए-रू-सियाह क्या कहना