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आप दिल खोल कर बे-दाद पे बे-दाद करें | शाही शायरी
aap dil khol kar be-dad pe be-dad karen

ग़ज़ल

आप दिल खोल कर बे-दाद पे बे-दाद करें

मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी

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आप दिल खोल कर बे-दाद पे बे-दाद करें
और हम ज़ब्त से लें काम न फ़रियाद करें

हश्र में उस की नज़र हो गई नीची हम से
हो सके जिन से वो अब शिकवा-ए-जल्लाद करें

कुछ तो फ़रमाइए इंसाफ़ अगर है कोई चीज़
आप को दिल से भुलाएँ तो किसे याद करें

दिल-ए-बेताब सँभलता ही नहीं सीने में
एक मज़लूम की अब आप कुछ इमदाद करें

आज इक क़ब्र पे 'आलिम' ये लिखा देखा था
साकिन-ए-गुलशन-ए-हस्ती न मुझे याद करें