आप दिल खोल कर बे-दाद पे बे-दाद करें
और हम ज़ब्त से लें काम न फ़रियाद करें
हश्र में उस की नज़र हो गई नीची हम से
हो सके जिन से वो अब शिकवा-ए-जल्लाद करें
कुछ तो फ़रमाइए इंसाफ़ अगर है कोई चीज़
आप को दिल से भुलाएँ तो किसे याद करें
दिल-ए-बेताब सँभलता ही नहीं सीने में
एक मज़लूम की अब आप कुछ इमदाद करें
आज इक क़ब्र पे 'आलिम' ये लिखा देखा था
साकिन-ए-गुलशन-ए-हस्ती न मुझे याद करें
ग़ज़ल
आप दिल खोल कर बे-दाद पे बे-दाद करें
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी