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आप अपनी नक़ाब है प्यारे | शाही शायरी
aap apni naqab hai pyare

ग़ज़ल

आप अपनी नक़ाब है प्यारे

रियासत अली ताज

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आप अपनी नक़ाब है प्यारे
ये भी कोई हिजाब है प्यारे

नक़्श-बर-रू-ए-आब है प्यारे
ज़िंदगी इक हबाब है प्यारे

ले के चल शैख़ दफ़्तर-ए-तक़्वा
आज रोज़-ए-हिसाब है प्यारे

तेरा हुस्न-ओ-जमाल क्या कहना
माहताब आफ़्ताब है प्यारे

कौन जाता है दिल में आ आ कर
हर सुकूँ इज़्तिराब है प्यारे

हुस्न तक़्वा-शिकन सही लेकिन
इश्क़ ख़ाना-ख़राब है प्यारे

इक सरापा सुरूर-ओ-बद-मस्ती
आँख क्या है शराब है प्यारे

मेरे ज़ौक़-ए-नज़र की रुस्वाई
किस ख़ता का इ'ताब है प्यारे

इस क़दर भी न 'ताज' इतराना
चार दिन का शबाब है प्यारे