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आप अपने को मो'तबर कर लें | शाही शायरी
aap apne ko moatabar kar len

ग़ज़ल

आप अपने को मो'तबर कर लें

ग़नी एजाज़

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आप अपने को मो'तबर कर लें
मिलने वालों के दिल में घर कर लें

ज़िंदगानी के दिन जो थोड़े हैं
क्यूँ न हंस बोल कर बसर कर लें

चुन रहे हैं जो ऐब औरों के
अपने दामन पे भी नज़र कर लें

कौन देता है साथ मुश्किल में
हौसलों ही को हम-सफ़र कर लें

चाहिए कुछ सुकून दुनिया में
ख़्वाहिशें अपनी मुख़्तसर कर लें

बात पहुँचे किसी तरह उन तक
हम सितारों को नामा-बर कर लें

जंगलों से हमें गुज़रना है
पहले साँपों को बे-ज़रर कर लें

चलिए जादूगरों की बस्ती में
अपने ऐबों को भी हुनर कर लें

आओ दुख दर्द बाँट लें 'एजाज़'
रंज-ओ-ग़म को इधर-उधर कर लें