आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया
आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया
अर्श से आज असर ता-लब-ए-फ़रियाद आया
एक ही आह में काफ़िर को ख़ुदा याद आया
जौर के साथ तेरा लुत्फ़ भी कुछ याद आया
होंट पर बन के हँसी शिकवा-ए-बेदाद आया
आज शब में कोई सौ बार तो बिजली चमकी
आज दिन में कोई सौ बार तो सय्याद आया
मेरे दिल में अजब अंदाज़ से आया नावक
मैं ये समझा कोई मा'शूक़-ए-परी-ज़ाद आया
क्या कहा फिर तो कहो भूल गए हम किस को
सदक़े उस के जो तुम्हें भूल के यूँ याद आया
फ़ित्ना-ए-हश्र ने भी उठ के बलाएँ ले लीं
अजब अंदाज़ से मेरा सितम ईजाद आया
सन से झोंका कोई आया जो तिरा बाद-ए-बहार
चौंक उठे मुर्ग़-ए-चमन नावक-ए-सय्याद आया
अरे क़ातिल अभी बह जाएगा पानी हो कर
सामने मेरे अगर ख़ंजर-ए-फ़ौलाद आया
यही गुलशन की हवा है यही गुलशन की बहार
कभी सय्याद कभी नावक-ए-बेदाद आया
नज़र आती हैं कहीं ऐसी भी काफ़िर शक्लें
देख कर हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद ख़ुदा याद आया
पास से नीम निगह दूर से मिज़गान-ए-दराज़
चुभने वाले नए नश्तर लिए फ़स्साद आया
न सुना हम ने कभी बाग़ में आई है बहार
जो सुना भी तो सुना हम ने कि सय्याद आया
क्यूँ निगाहें ये गढ़ी हैं शिकन-ए-दामन पर
सदक़े अंदाज़-ए-हया के तुझे दिल याद आया
आशियाँ बर्क़ को सौंपा मुझे आई जो तरंग
और मैं उड़ के इधर ता-कफ़-ए-सय्याद आया
असर आया भी तो जैसे कोई फ़रियादी हो
हाथ में थामे हुए दामन-ए-फ़रियाद आया
दस्त-ए-मातम लिए बैठी रही शीरीं अपने
तेशा अच्छा कि तिरे काम तो फ़रहाद आया
ऐसी ज़िद है तो उन्हें कौन मनाए यारब
वो ये मचले हैं कि कोई मुझे क्यूँ याद आया
लिए ख़ंजर की रवानी थी हर इक मौज-ए-ख़िराम
आज मक़्तल में नई शान से जल्लाद आया
मैं जो पहुँचा तो लिए उठ के बगूलों ने क़दम
नज्द में धूम मची क़ैस का उस्ताद आया
बढ़ के ले हल्का-ए-आग़ोश में ऐ दस्त-ए-जुनूँ
बेड़ियाँ काटने किस लुत्फ़ से हद्दाद आया
डर के सहरा-ए-बला से जो पुकारा मैं ने
क़ैस ने दी मुझे आवाज़ कि फ़रहाद आया
सदक़े होंटों के जिन्हें नाज़-ए-मसीहाई है
सदक़े बातों के जिन्हें शेवा-ए-जल्लाद आया
दे उठीं ख़ून रगें नाम जो नश्तर का लिया
रंग ऐसा मिरी तस्वीर में बहज़ाद आया
तिफ़्ल-ए-अश्क आ के मिरी गोद में मचले जो 'रियाज़'
दिल-ए-मरहूम मुझे आज बहुत याद आया
ग़ज़ल
आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया
रियाज़ ख़ैराबादी