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आओ पतझड़ में कभी हाल हमारा देखो | शाही शायरी
aao patjhaD mein kabhi haal hamara dekho

ग़ज़ल

आओ पतझड़ में कभी हाल हमारा देखो

जमील मलिक

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आओ पतझड़ में कभी हाल हमारा देखो
ख़ुश्क पत्तों के सुलगने का तमाशा देखो

पास आ कर मिरे बैठो मुझे अपना समझो
जब भी रूठी हुई यादो मुझे तन्हा देखो

फूल हर शाख़ पे खिलते हैं बिखर जाते हैं
क्या तमाशा है सर-ए-नख़्ल-ए-तमन्ना देखो

कभी हम-रंग-ए-ज़मीं है कभी हम-दोश-ए-फ़लक
कोहसारों से उछलता हुआ दरिया देखो

खुलती जाती है शफ़क़ रंगी-ए-ख़ूँ-ता-ब-सहर
शब के सीने में जो पैवस्त है नेज़ा देखो

यूँ तो घर ही में सिमट आई है दुनिया सारी
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो

उन्ही आँखों में उतर जाती है हर शाम 'जमील'
उन्ही आँखों से निकलता है सवेरा देखो