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आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें | शाही शायरी
aao kuchh zikr-e-rozgar karen

ग़ज़ल

आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें

मोहम्मद याक़ूब आसी

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आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें
दौर-ए-हाज़िर के ग़म शुमार करें

और भी बोझ हैं इसी सर पर
आरज़ूएँ कहाँ सवार करें

आप नुक़सान सह न पाएँगे
आप दिल का न कारोबार करें

हम से तो बे-रुख़ी नहीं होती
जो भी चाहें हमारे यार करें

आबला-पा पयाम छोड़ गए
लोग नज़्ज़ारा-ए-बहार करें

है तक़ाज़ा-ए-ग़ैरत-ए-इमरोज़
ज़ोर-ए-बाज़ू पे इंहिसार करें

कुछ तो फ़रमाइए कि 'आसी-जी'
क्या करें किस पे ए'तिबार करें