आँसू तुम्हारी आँख में आए तो उठ गए
हम जब करम की ताब न लाए तो उठ गए
बैठे थे आ के पास कि अपनों में था शुमार
देखा कि हम ही निकले पराए तो उठ गए
हम हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब थे हमें कौन रोकता
लफ़्ज़ों के तुम ने जाल बिछाए तो उठ गए
बैठे छुपा छुपा के जो दामन में आफ़्ताब
हम ने भी कुछ चराग़ जलाए तो उठ गए
क्या था हमारे पास ब-जुज़ इक सुकूत-ए-ग़म
चरके बहुत जो तुम ने लगाए तो उठ गए
ग़ज़ल
आँसू तुम्हारी आँख में आए तो उठ गए
अताउर्रहमान जमील