EN اردو
आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं | शाही शायरी
aansu ki tarah ponchh ke phenka gaya hun main

ग़ज़ल

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

;

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं
तारा हूँ और ज़मीं पे गिराया गया हूँ मैं

क़ुर्बान-गाह-ए-ग़म पे चढ़ाने के वास्ते
बचपन में कितने प्यार से पाला गया हूँ मैं

ताबिश-गुरेज़ियों को मजाल-ए-नज़र कहाँ
चश्मा लगा के धूप का देखा गया हूँ मैं

गो मा-वारा-ए-वक़्त भी है मुझ में एक चीज़
मीज़ान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तौला गया हूँ मैं

दम ले के लौट जाऊँगा ओ मेज़बाँ ज़मीं
क़ासिद बना के दूर से भेजा गया हूँ मैं

ऐ साकिनान-ए-शहर-ए-ख़मोशान-ए-ज़िंदगी
पैग़ाम-ए-हश्र दे के उतारा गया हूँ मैं

मंज़िल की क़द्र होती है आवारगी के बाद
जन्नत से इस लिए भी निकाला गया हूँ मैं

'कौसर' लिबास-ए-क़हर में उतरी हैं रहमतें
ठोकर लगा के राह पे लाया गया हूँ मैं