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आँसू भी बहा कर देख लिए सोज़-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ कम न हुआ | शाही शायरी
aansu bhi baha kar dekh liye soz-e-gham-e-pinhan kam na hua

ग़ज़ल

आँसू भी बहा कर देख लिए सोज़-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ कम न हुआ

मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी

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आँसू भी बहा कर देख लिए सोज़-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ कम न हुआ
दिल में तिरी उल्फ़त का शोला शोला ही रहा शबनम न हुआ

दुनिया की बहारों में खो कर मैं अपनी नज़र से छुप जाता
सद-शुक्र दिल-ए-आगाह मिरा दिल बन गया जाम-ए-जम न हुआ

था दाग़-ए-तमन्ना रूह-शिकन कुछ हिम्मत-ए-ग़म काम आ ही गई
दिल में तो बड़े तूफ़ान उठे आँसू न बहे मातम न हुआ

हम शुक्र-ए-सितम यूँ करते हैं जैसे कोई नेमत मिल जाए
लेकिन ये तिरा अंदाज़-ए-नज़र नश्तर ही रहा मरहम न हुआ

बिखरे हुए तिनके चुन चुन कर तामीर नशेमन कर तो लिया
तामीर-ए-नशेमन से लेकिन एहसास-ए-तबाही कम न हुआ

काफ़ी है 'फ़रीदी' को वो नज़र जो मरहम-ए-ज़ख़्म-ए-हस्ती है
तू ने जिसे अपना ग़म बख़्शा फिर उस को किसी का ग़म न हुआ