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आँसुओं को रोकता हूँ देर तक | शाही शायरी
aansuon ko rokta hun der tak

ग़ज़ल

आँसुओं को रोकता हूँ देर तक

ग़नी गयूर

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आँसुओं को रोकता हूँ देर तक
धुँद में क्या देखता हूँ देर तक

खुल गई अल्फ़ाज़ की हैं खिड़कियाँ
खिड़कियों से झाँकता हूँ देर तक

पेड़ से इश्क़-ए-गिलहरी देख कर
उस गली में दौड़ता हूँ देर तक

ख़ामुशी भी कोई झरना है अगर
किस लिए फिर बोलता हूँ देर तक

चियूँटियों के बिल में पानी डाल कर
क्यूँ तमाशा देखता हूँ देर तक