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आँसुओं की एक चादर तन गई है | शाही शायरी
aansuon ki ek chadar tan gai hai

ग़ज़ल

आँसुओं की एक चादर तन गई है

माजिद-अल-बाक़री

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आँसुओं की एक चादर तन गई है
देखने में रौशनी ही रौशनी है

सूखे पत्ते सब इकट्ठे हो गए हैं
रास्ते में एक दीवार आ गई है

ग़म का रेला ज़ेहन ही को ले उड़ा है
सोचिए तो आँधियों की क्या कमी है

चुल्लू-चुल्लू रौशनी को पी रहा हूँ
मौज-ए-दरिया क़तरा क़तरा चाँदनी है

रात में धुनका हुआ सूरज पड़ा था
दिन में 'माजिद' धूप काली हो गई है