आँखों से ख़ून अपने ये कहता नहीं न जाए
पर साथ उस के लिपटा हुआ दिल कहीं न जाए
इतनी तो चाहिए तुझे पास-ए-शिकस्ता-दिल
जो आवे तेरे याँ सो वो अंदोहगीं न जाए
सब्र-ओ-क़रार-ओ-होश-ओ-ख़िरद सब के सब ये जाएँ
पर दाग़-ए-इश्क़ सीने से ऐ हम-नशीं न जाए
दैर-ओ-हरम में जा के जो चाहे फिर आ सके
पर आवे जो गली में तिरी वो कहीं न जाए
हम गिर्या-नाक हैं ये सदा से है ऐब-पोश
आँखों से दूर अपने कहीं आस्तीं न जाए
है पारा-ए-अक़ीक़ जिगर देखियो कहीं
ऐ चश्म तेरे हाथ से ऐसा नगीं न जाए
निकले न जान तन से 'हसन' की तो तब तलक
जब तक तू उस के सर पे दम-ए-वापसीं न जाए
ग़ज़ल
आँखों से ख़ून अपने ये कहता नहीं न जाए
मीर हसन