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आँखों से बरसते अश्कों की बरसात पे रोना आता है | शाही शायरी
aankhon se baraste ashkon ki barsat pe rona aata hai

ग़ज़ल

आँखों से बरसते अश्कों की बरसात पे रोना आता है

नय्यर आस्मी

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आँखों से बरसते अश्कों की बरसात पे रोना आता है
नादानी-ए-उल्फ़त कर बैठे इस बात पे रोना आता है

हर साँस है इक तलवार बनी हर नफ़्स है ग़म का पैमाना
करते हैं मोहब्बत जो उन को काँटों पे भी सोना आता है

अब दिल को है समझाना मुश्किल जो टूट गया सो टूट गया
क्या बात बनेगी हँसने से हँसते हैं तो रोना आता है

बख़्शे हैं तू ने लाख सितम ग़म मुझ को दिए हैं तेरा करम
हम को भी ग़मों के तीरों को सीने में चुभोना आता है

बहते हुए अश्को रुक जाओ अरमान के धारो थम जाओ
देखो तो तसव्वुर में मेरे साजन वो सलोना आता है