आँखों से अपनी 'आसिफ़' तू एहतिराज़ करना
ये ख़ू बुरी है इन का इफ़शा-ए-राज़ करना
जाते तो हो पियारे उक्ता के मुझ कने से
पर वास्ते ख़ुदा के फिर सरफ़राज़ करना
दो-चार दिन में ज़ालिम होवेगी ख़त की शिद्दत
ये हुस्न आरज़ी है इस पर न नाज़ करना
फिरते हो तुम हर इक जा हम भी तो आश्ना हैं
याँ भी करम कभी ऐ बंदा-नवाज़ करना
दिल तो बहुत लिए हैं तुम ने हर एक जा से
इस मेरे दिल का साहब कुछ इम्तियाज़ करना
ग़ज़ल
आँखों से अपनी 'आसिफ़' तू एहतिराज़ करना
आसिफ़ुद्दौला