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आँखों ने बहुत दिन से क़यामत नहीं देखी | शाही शायरी
aankhon ne bahut din se qayamat nahin dekhi

ग़ज़ल

आँखों ने बहुत दिन से क़यामत नहीं देखी

असअ'द बदायुनी

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आँखों ने बहुत दिन से क़यामत नहीं देखी
मुद्दत हुई अच्छी कोई सूरत नहीं देखी

चेहरों की तरह किस लिए मुरझाए हुए हैं
फूलों ने तो हम जैसी मुसीबत नहीं देखी

वो शहर से गुज़रा था फ़क़त याद है उतना
फिर कोई भी दस्तार सलामत नहीं देखी

लौटे जो मसाफ़त से तो मैं उस से ये पूछूँ
बस्ती तो कोई राह में ग़ारत नहीं देखी

गिरते हुए पत्तों की सदाएँ मिरे दिल से
कहती हैं कि तू ने कोई हिजरत नहीं देखी